एक सफ़लता ऐसी भी। एक सफ़लता ऐसी भी लोग अक़्सर कहते है ,क़िस्मत और समय एक जैसा नहीं रहता यह मेहनत के साथ बदलता जाता है। समय था, ठंड का और मेरी ट्रांसफर हो गयी थी मध्य प्रदेश भोपाल के ग्वालियर डिस्ट्रिक्ट में मैं स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में एक एम्प्लोयी था। मुझे एक सप्ताह पहले इसकी जानकारी मिली थी।,और फिर मैं भोपाल के लिए तयारी करने लगा हेमा मेरी पत्नी सम्मान सारा पैक कर रही थी पूरी खुशी से खुशी उसे इस बात का था की वह कभी बाहर घूमने नहीं गई थी। इसीलिए काफी खुश थी। सोमवार से मुझे भोपाल में ड्यूटी ज्वाइन करना था। इसी तरह कब सारा सम्मान रेडी करते कब सात दिन बीत गए पता ही न चला। मैं एक मिडिल क्लास फॅमिली से था। बहुत कम्पटीशन करने के बाद मुझे नौकरी मिली थी। उसके बाद घर वालों ने शादी करा दी। और इस तरह मैं भी कभी शहर से बाहर नहीं घूमने जा पाया था। अब जब जा रहे थे तो बैंक की ओर से रहने के लिए एक घर भी मिल रहा था। तो फिर मैंने माँ -पिताजी को भी साथ लेते चले गए। नई जगह थी कुछ समझ नहीं आ रहा था सिर्फ घर से बैंक और बैंक से घर वाली हालत थी। काफी दिन बीत गए भोपाल में लोग शुद्ध हिन्दी बोलते है।