एक सफ़लता ऐसी भी हिन्दी उपन्यास

एक सफ़लता ऐसी भी। 
ek saflta aisi bhi hindi short fiction story
एक सफ़लता ऐसी भी 

लोग अक़्सर कहते है ,क़िस्मत और समय एक जैसा नहीं रहता यह मेहनत के साथ बदलता जाता है। 
समय था, ठंड का और मेरी ट्रांसफर हो गयी थी मध्य प्रदेश भोपाल के ग्वालियर डिस्ट्रिक्ट में मैं स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में एक एम्प्लोयी था। मुझे एक सप्ताह पहले इसकी जानकारी मिली थी।,और फिर मैं भोपाल के लिए तयारी करने लगा हेमा मेरी पत्नी सम्मान सारा पैक कर रही थी पूरी खुशी से खुशी उसे इस बात का था की वह कभी बाहर घूमने नहीं गई थी। इसीलिए काफी खुश थी। सोमवार से मुझे भोपाल में ड्यूटी ज्वाइन करना था। इसी तरह कब सारा सम्मान रेडी करते कब सात दिन बीत गए पता ही न चला। मैं एक मिडिल क्लास फॅमिली से था। बहुत कम्पटीशन करने के बाद मुझे नौकरी मिली थी। उसके बाद घर वालों ने शादी करा दी। और इस तरह मैं भी कभी शहर  से बाहर नहीं घूमने जा पाया था। अब जब जा रहे थे तो बैंक की ओर से रहने के लिए एक घर भी मिल रहा था। तो फिर मैंने माँ -पिताजी को भी साथ लेते चले गए। नई जगह थी कुछ समझ नहीं आ रहा था सिर्फ घर से बैंक और बैंक से घर वाली हालत थी। 
काफी दिन बीत गए भोपाल में लोग शुद्ध हिन्दी बोलते है। धीरे -धीरे हम सब भी शुद्ध हिंदी बोलने लगे। काफी मज़ा आ रहा था। 

एक दिन 
एक दिन हमने देखा हमारे पड़ोस के बगल वाले घर में लड़ाई हो रही थी। मैं गया देखा एक पिता अपने बेटे को सुना रहे थे। मैंने पूछा क्या हुआ सर उसके पिता जी ने बताये देखिए ना सर ग्रेजुएशन किये हुए दो साल हो गए। मैं कब का रिटायर हो गया हूँ ,और ये लड़का कुछ करता ही नहीं हमारा घर चलाना मुश्किल हो गया है। मैंने कहा लड़के से देखो यार जब तक कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल जाती तब तक कोई छोटा मोटा काम कर लो। फिर मैं वहाँ से चला आया अपने घर। 

अगली सुबह करीब १० बजे मैंने लड़के को देखा शहर में मैं बाइक में था। तो रुक गया और लड़के को फॉलो करने लगा बाइक खड़ी करके। मैंने देखा वह लड़का एक फाइल लेकर किसी कंपनी में जा रहा था। फिर मैं उसको फॉलो करना छोड़कर वापस बैंक चला गया। फिर अगले दिन देखा वैसे ही फाइल लेकर इधर -उधर घूम रहा था। काम की तलाश में। 
शाम को मैं उस लड़के से मिला मैंने कहा यार मैं योगा क्लास जा रहा हूँ ,चलो तुम भी घूम लेना उसने बोलै ठीक है भइया चलता हूँ। रास्ते में मैंने पूछा कहीं कोई काम वाम मिला उसने कहा नहीं भइया। आपका कोई जान पहचान का है तो कहीं लगवा दीजिए ना। 
मैंने कहा आज तुमको एक ऐसी जगह लेकर जा रहा हूँ जहाँ ढ़ेर सारा ज्ञान और पैसा है ,समझ सको तो समझ लेना। जब हमलोग योगा क्लास में पहुंचे तो ट्रेनर आई और योगा करवाने लगी। फिर वह घूम घूम के चारो तरफ देख रहा था। क्लास खत्म होने के बाद वह बोला भइया ये ट्रेनर थी मैंने कहा हां बिश्वास नहीं होता भइया कैसे ? मैंने कहा यार अपना अपना टैलेंट पहचानने का है। ये ट्रेनर 17  साल में ही अपना टैलेंट समझ गई और पैसा कमाने लगी और तुम अब तक नहीं समझ पाए। 

अगले दिन 
वह बोला  भैया मैं भी योगा क्लास जाऊँगा लेकिन पैसे आप दे देना ,मैंने कहा ठीक है वह दिन रात योगा करने लगा। 6 महीने बाद योगा डिस्ट्रिक्ट लेवल में हुई वह चैंपियन रहा। फिर 6 महीने बाद हुई वह स्टेट चैंपियन बन गया। और इसी के साथ उसे डिग्री मिल गई नॉलेज की और अपना योगा क्लास खोलने की उसने अपना ख़ुद का योगा क्लास खोला और उसका सबसे पहला स्टूडेंट मैं ही था। इस तरह धीरे -धीरे शुरू में 10 लोग आये और फ़ीस थी 500 रुपी पर महीना इस तरह वह पहले महीने में 5000 रुपए कमाए और उसका स्टूडेंट धीरे -धीरे बढ़ने लगा। वह अपना प्रैक्टिस चालू रखा और अगले साल नेशनल लेवल चैंपियन भी बन गया। अब उसके क्लास की वैल्यू और बढ़ गई और इस तरह उसके ३ महीने में ही 40 से ज्यादा स्टूडेंट हो गए। और ३ महीने बाद उसकी इनकम हुए २० हज़ार पर मंथ और ६ महीने बाद जब वह इंटरनेशनल लेवल का चैंपियन बना तो उसके स्टूडेंट 80 + हो गए और एक साल होते होते उसकी सैलरी 40 हज़ार हर महीने की हो गई। और उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा बस अपना क्लास चलाता रहा और उसकी घर की कंडीशन भी काफ़ी अच्छी हो गई। 

सीख़ - दोस्तों कई बार ऐसा होता है की कुछ टैलेंट हमारे अंदर पहले से होती है ,लेकिन बस हम बड़े -बड़े ख्वाबो के चकर में छोटी -छोटी चीजों पे ध्यान नहीं देते और हमे पछताना बाद में पड़ता है ,और किसी टॉप रिचेस्ट मेन ने कहा है ,एक आय में कभी डिपेंड मत रहो। 
आर्टिकल पढ़ने का शुक्रिया। 
लेख़क -अमित रॉक्ज़ 

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