मुंशी प्रेमचंद की सीख़ - Premchand Day Special

31 जुलाई ,1880 - 08 अक्टूबर , 1936


Munshi premchand day Special
Munshi Premchand

मुंशी प्रेमचंद लेखक की दुनिया के बेताज बादशाह, आज हर कोई मुंशी प्रेमचंद के जैसा लिखना चाहता है, बात ही थी उनमें कुछ ऐसा की हर कोई उन्हें पसंद करता है। आज सुबह मैं पेपर खोला तब पता चला की आज प्रेमचंद जयंती है।  पेपर में बहुत कुछ दिया हुआ था तो मैंने सबकुछ पढ़ा। पढ़ - कर समझ आया की अगर आपको किताबें पढ़ने का शौक नहीं है तो आप मुंशी प्रेमचंद की बहुत बड़ी सीख नहीं ले पाएंगे क्योंकि जितनी गहराई से वे लिखते थे उतनी गहराई से आप फिल्म में उनकी सीख कभी नहीं ले पाएंगे और अगर आप एक लेखक बनना चाहते है फिर तो इनकी हर स्टोरी आपको पढ़नी चाहिए तभी आप एक अच्छे लेखक बन सकते है। 

सुबह में जब पेपर पढ़ रहा था तभी मेरी नजर मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी कहानी कश्मीरी सेब.... पर गयी जिस तरह से कहानी को लिखा गया था वो कहानी बहुत देर तक मेरे दिमाग में घूमता रहा। फिर मैंने सोचा क्या इतनी सी बात कहानी बन सकती है तो सोचा लिख कर देखता हूँ शायद किसी को पसंद आ जाये। 

इतनी सी बात कहानी बन गयी। 

इंसान जब फेल होता है ,
तभी मेहनत करना जनता है। 

सोशल मीडिया का जमाना है , और हर कोई अपना - अपना ओहदा बड़ा करने में लगे है।  इन दिनों हर गली नुकड़ में हर कोई यूट्यूब में चैनल बनाकर लोगो को मोटीवेट करने की कोशिश कर  रहा है।  बहुत से लोग मोटीवेट करने वाले लोगो को गुरु मानने लगते है , मैंने देखा हर किसी का  गुरु है तो मेरा भी होना चाहिए।  तो मैंने भी एक गुरु बना लिया , सोशल मीडिया यूट्यूब में उनकी भाषण सुनकर बहुत ही अच्छा लगता तो मैंने उन्हें इंस्टाग्राम पर भी फॉलो कर लिया।  इंस्टाग्राम में बड़े से बड़ा आदमी क्यों न हो अगर उनको आपकी कमेंट अच्छे लगेंगे तो वे लाइक कर देते है।  

हमारे गुरु हमेशा इंस्टाग्राम में अच्छे - अच्छे पोस्ट डालते। मैं उनके पोस्ट में हमेशा  कमेंट करता और वे हमेशा से मेरी कमेंट को लाइक कर देते इससे अच्छा लगता और ज्ञान तो पोस्ट में रहता ही था। इस तरह एक अर्सा बीत गया था।  उन दिनों मैंने अपनी पहली पुस्तक कम्पलीट कर ली थी। और Amazon पर प्रकाशित भी कर दिया था।  तो अंदर ही अंदर बहुत खुश था। 20 साल की उम्र में मैंने कई कहानियाँ लिख डाली थी लेकिन सब फ्री में थी।  यह पुस्तक पहली थी जिसमे मैंने पैसा देकर पढ़ने वाला सिस्टम रखा था।  

तो भाई 20 साल की उम्र में उपन्यास किताब लिख दिया था तो अंदर से बहुत खुश था तो दो -तीन दिन  से सोच रहा था।  यह बात गुरु जी को भी बतानी चाहिए जिससे उन्हें गर्व महसूस हो , आखिरकार मैंने उनके पोस्ट में उनकी पोस्ट की तारीफ कर अपनी बात बता दी।  फिर 6 घंटे बाद देखा कोई लाइक नहीं 12 घंटे बाद कोई लाइक नहीं 24 घंटे बाद कोई लाइक नहीं।  2 दिन बाद कोई लाइक नहीं मुझे इंतज़ार था गुरूजी मेरी कमेंट  को लाइक करेंगे लेकिन गुरूजी ने लाइक नहीं किये। 

कई कहानियों में सीख बताने की कोई जरूरत नहीं होती। हम अक्सर जिनपर आँख बंद कर भरोसा करते है , वही लोग हमे धोखा देते है।  कुछ बड़े लोग आपकी बातों को तब तक पसंद करंगे जब उन्हें पता है वो मुझसे नीचे है जैसे ही आप ऊपर होने लगते हो लोग आपसे जलने लगते है , ये हर इंसान की कहानी है लेकिन कोई अंदर की बात नहीं बताता।  मुझे तो उनकी छोटी सी हरकतों से फर्क पड़ा लेकिन रुक कर सोचते रहने बेहतर मैंने उस घटना से सीख लेकर आगे बढ़ना उचित समझा।  

और मैंने मुंशी प्रेमचंद से सीखा। 

  • Author - Amit Rockz



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