इंसानियत की खोज
इंसानियत की खोज
बहुत दिन के बाद मै शहर से घर गया था । और 5 दिन घर मे रहने के बाद मेरी छुटीया खत्म हो चुकी थी।तो मै वापस लौट रहा था।हर रोज की तरह ऐसा नही होता है कि मेरी नींद जल्दी खुल जाए लेकिन आज खुल गई ।घर मे जल्दी सोने की वजह से शायद और घर मे कभी किसी चीज का तनाव नही रहता।
12:00 बजे मेरी ट्रेन थी।
मैने सबकुछ समय से कर लिया था और रेलवे स्टेशन मेरे घर से 25 किलोमीटर दूर थी।
इसलिए मै 10:00बजे ही निकल गया था । बस मे भीड थी और समय रहते हुए मैने लोकल ओटो से निकल पड़ा ।
लोकल ओटो हर जगह रूकते हुए और लोगों को लेकर चलती है ।
लोग बहुत ही देर से गाँव मे इनका इंतजार करते रहते है ।इस तरह मेरी सफर शुरू हो गई थी ।
2-3 किलोमीटर की दूरी मे कुछ उतरते फिर कुछ आगे जाकर बैठते ।इस तरह सफर चलता रहा ।
फिर मुझे लगा अगर इतना रूक रूक के चले तो लेट हो जाएगे ।एक बार सोचा मोबाइल निकाल कर समय देख ले ।लेकिन फिर सोचा समय देखने से क्या होगा अगर इसी गति से चल ही रहे है तो ।
फिर थोड़ी दूर जाकर कुछ चढते कुछ उतरते ।मैंने सोचा कही ट्रेन लेट न हो जाए तो फिर सोचा नही 2 घंटा पहले निकले है तो लेट थोड़ी होगा ।यह सोच फिर से मस्ती मे चलता रहा ।
फिर देखा ओटो रूक गई । कुछ लोग को बैठाने के लिए मै देखा और खुद से पुछा क्या ये सब पैसो के लिए कर रहा है । मेरी अंतरआत्मा से आवाज आई, नही ।इसकी इंसानियत की वजह से कई लोग समय से अपना काम कर ले रहे है । उनकी कितनी मदद हो रही है जिनके पास गाड़ी की सुविधाए नही है ।फिर इस कई जगह ओटो रूकी लोगों को लेने के लिए और इसके बाद मै समय और ट्रेन की चिन्ता छोडकर मजे से उस ओटो ड्राइवर की इंसानियत देखता रहा । हमारी जीवन शहरों मे ज्यादा कटती है तो अपने कामों से फुरसत ही नही मिलती की ऐसी इंसानियत देख पाए।
12:20 मे रेलवे स्टेशन पहुंचा तो ट्रेन जा चुकी ।लेकिन मै फिर भी खुश था ।की इतने कम समय मे मैंने इंसानियत को लोगो के बीच देखा ।और फिर बस आई थोड़ी देर मे और फिर मै बस से शहर आ गया।
जय महाकाल ।
Published by Amit Rockzz
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